तलक्कल चंदू ये कुरुचिया जनजाति के सरदार थे | ये दक्षिण मे स्थित केरल राज्य के वायनाड जिल्हे के जंगल मे रहनेवाले अनगिनत लड़ाकू मे से एक थे | वे केरल राज्य के पज्ञसी राजा के अत्यंत विश्वासु थे उने राजा का दया हाथ भी कहा जाता था | अंग्रेजो ने इ.स. 1805 मे भारतीय लोगो पर बोहत ही ज्यादा अत्याचार किये इन अत्याचार को रोकने के लिए तलक्कल चंदू ने अपने सहकारी वनवासी भाई बंधू वो को एकत्रित करके उनोने अंग्रेजो के विरुद्ध युद्ध सुरु किया | उस समय तलक्कल बंधू के पास अंग्रेजो की तरह अत्याधुनिक शस्त्र और प्रशिक्षित लड़ाकू नहीं थे उनोने अपने पास के तलवार और धनुष्य बाण से ही युद्ध लढा मगर उनकी इस युद्ध मे हर हुई और मलबार के कलेक्टर ने भेजी हुई फौजने उने गिरफ्तार किया और अगस्त 1805 उने अंग्रेजोंने फाँसी देदी |
रानी चेन्नम्मा का जन्म इ.स.1778 मे हुवा था | वे के .श्री धूलप्पा देसाई की प्रथम कन्या थी | उनकी माँ का नाम पद्मावती था | वे काकतीय राजघराने से थे | रानी चेन्नम्मा बोहत ही सुंदर थी उनकी सुंदरता देखते बनती थी | उन्हें कही भाषा का ज्ञान था वे उर्दू , मराठी भाषा की अच्छी जानकारी रखती थी | इसके आलावा घुड़सवारी ,तलवारबाजी ,भाला युद्ध इन सबमे इनका बोहोत है प्रभुत्व था | इ.स. 1794 मे महाराजा 'मल्लसर्जा ' के साथ सदी हुई | वे कित्तूर संस्थान के महाराजा थे | उनका इ.स. 1816 मे निधन हो गया | उनके बाद उनके पुत्र शिवलिंग रुद्रसर्जा ने उनका राजपाठ संभाला | अंग्रेजी हुकूमत की कित्तूर राज्य पर कही दिन से नजर थी | उसे हड़पने के लिए उनोने कही प्रयत्न भी किये मगर वो असफल रहे | इसके बाद अंग्रेजो ने 30 दिसंबर 1824 को कित्तूर राज्य पर आक्रमण किया | और कित्तूर राज्य को जितने के लिए उनोने कित्तूर के दो सरदारों को सम्पत्ति और कुछ कित्तूर का भाग बक्षिस मे देने का लालच दिया | उनसे धोखादड़ी करवाई और उनके जरिये रानी चेन्नम्मा को पकड़लिया गया | उने पकड़के बेलहोंगल के कारागृह मे रखा गया | उनका निधन उसी कारगृहमे 2 फरवरी 1829 मे हुवा |
संगोली रायन्ना ये कित्तूर के एक विश्वासु सरदार थे उने भी रानी चेन्नम्मा के साथ गिरफ्तार किया था | और उसी कारागृह मे रखा था | मगर कुछ दिनबाद संगोली रायन्ना कैद से भाग ने सफल हुवे | उनके भाग ने के बाद अंग्रेज सरकार ने उनको पकड़नेवालो को 5000 /- राशि का इनाम रखा था | संगोली रायन्ना कैद से भाग ने के बाद उनोने अपने कुछ शहकरियो के साथ मिलकर रानी चेन्नम्मा को अंग्रेजो की कैद छुड़वाने की कोशिश की थी मगर वो असफल रहे | 8 अप्रैल 1830 को संगोली रायन्ना को अंग्रेजो ने पकड़ा और राजद्रोह का आरोप लगाकर उनपर मुकदमा चलाया | उने पकड़ने मे लिंगन गौड़ और वेंगन गौड़ ने इनाम की लालच मे और आपसी दुश्मनी की वजहसे अंग्रेजो का साथ दिया | वे खोडनपुर के जंमींदार थे | संगोली रायन्ना को 30 दिसंबर को ' नन्दगढ़ ' गांव के भरे चौक मे लोगो के सामने उने फाँसी पर चढ़ाया |
उमाजी नाईक ये एक युवा और जोश से भरे व्यक्ति थे उनोने अपने युवा जीवन से ही अंग्रेजो के विरुद्ध लड़ने की सोच ली थी | उनोने अंग्रेजो से लड़ने के लिया एक युवा संघटन की स्थापना की | उनोने इस संघटन के जरिये लोगो को कही संदेश पोहचए | अंग्रेजो ने इन्हे पकड़ने के लिए भी इनाम घोषित किया था | कही बार वो अंग्रेजो से बचते रहे मगर उनकी बहन ने ही उनके साथ धोकेबाजी की और उमाजी नाईक को पकड़वाया | उमाजी नाईक को अंग्रेजोने 3 फरवरी 1832 मे पौंआ के मामलेदार कचेरी के मैदान मे फाँसी लगादी | उमाजी नाईक का जन्म भिवडी गांव मे इ.स.1791 को हुवा था |
तीरथ सिंह ये खासी जनजाति के प्रमुख व्यक्ति थे | ये मेघालय राज्य के क्रांतिवीर थे | उनोने अंग्रेजो से लड़ने की लिए अपने खासी आदिवासी भाइयो के साथ मिलकर एक संघटन सुरु किया | उनके संघटन का धेय ब्रिटिश अधिकारियो का नाश करना ही था | अंग्रेज सरकार ने तीरथ सिंह को पकड़ने के लिए चालबाजी कर के उनके साथ चर्चा करने के बहाने उने बुलवाया और उने पकड़लिया | उने पकड़ने के बाद उन्हें ढाका जेल मे आजीवन बंद करदियागया | उनकी मृत्यु इ.स.1841 मे हो गई |
राजा बख्तावरसिंह का जन्म इ.स.1810 हुवा | वे इंदौर के राजा अजित सिंह के पुत्र थे | उन्होंने अंग्रेजो से लढ कर ' धार ' का किल्ला जीता था | उन्होंने अंग्रेजो के विरुद्ध कही जंगे छेड़ी थी | अंग्रेजो ने उन्हें हराने के लिए कूटनीति का उपयोग किया उन्हें संदेश भेज कर उनके साथ समझोता करने के प्रस्ताव रखा | मगर जब राजा बख्तावरसिंह वह गए तो उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया | उन्हें पकड़वाने के लिए जिम्मेदार उनका मंत्री गुलाबराव था उसने सम्पत्ति और राजसिहासन के लालच मे आकर राजा बख्तावर के साथ धोका किया | उसके बाद कैद मे रहने के बाद अंग्रेजोने 10 फरवरी 1858 को उन्हें फाँसी देदी | गुलाब राव को उसकी ये धोकड़ाडी बोहोत है महगी पड़ी और अंग्रेजो ने भी उसके साथ धोका किया और उसे भी फाँसी देदी |
बहादुरशाह का जन्म दिल्ली मे इ.स. 1775 मे हुवा था | वे मुग़ल बादशाह अकबर शाह के पुत्र थे | वे अंग्रेज सरकार के अधीन थे | पेशवा श्रीमंत नानासाहेब पेशवेने उन्हे अंग्रेजो के खिलाप जंग मे शमिल होने का सन्देशा दिया तो उन्होंने उसे काबुल केरलीय | इन सभी सेनानियोने बहादुरशाह के नेतृत्व मे स्वतंत्रता संग्राम करने का फैसला लिया | और भारत मे जंग का आगाज हुवा | मगर अंग्रेज सेना भोत ही शक्ति शाली थी | कुछ दिन बाद अंग्रेजो ने पुरे भारत पर कब्जा कर लिया | बहादुरशाह जफर को पकड़के रंगून मे कैद मे रखा गया | वे दी.7 नवंबर 1862 मे उनकी मृत्यु हो गई |
सिदो ये आदीवासी जनजाति मे से संबंध रखते थे | पश्चिम बंगाल के मिदनापुर मे आदिवासी लोगो ने फिर से संग्राम सुरु किया | उसका नेतृत्व सिदो कर रहे थे | दी. 15 जुलाई 1856 को वीर भूम जिल्हे के महेशपुर मे संथालो का सिदो और कान्हू , चाँद भैरो यग चार भाई के नेतृत्व मे अंग्रेज फौज का संग्राम सुरु हुवा | दी.2 नवंबर 1856 मे अंग्रेजो ने सिदो और कान्हू इन दो भाइयो को पकड़ा और इन्हे फांसी देदी |
अजीमुल्ला खान का जन्म इ.स. 1820 मे हुवा | वे कानपूर के रहवासी नजीमुल्ला खान के सुपुत्र थे | वे भोत ज्ञानी थे और इसके आलावा कही भाषा की जानकारी रखते ते थे | जैसे की फ़ारसी ,उर्दू ,संस्कृत .अंग्रेजी | वे पेशे से वकील थे उन्हें नानासाहेब पेशवे ने इंग्लैंड मे अपना वकील नियुक्त किया था | उस समय नानासाहेब पेशवे ने अंग्रेजो के खिलाप लढ रहेथे | अजीमुल्ला खान ने भी अंग्रेजो से लढना सुरु किया उन्हें उनकी ही चालबाजी से फ़साने लगे | वे अंग्रेज अधिकारी और अंग्रेज मड़मो को अपनी बातो से जाल मे फसालेतेथे | मगर उन्हें कानपूर के पास अहीरखा गांव मे पकड़लिया और उन्हें सुलीपर चढ़ाया गया |
छत्रपति राजे प्रतापसिंह सातारा का अंग्रेजो ने पूरा राजपथ विध्वंस कर दिया था | ये राजपथ वापस मांगने के लिया उन्होंने रंगो बापूजी गुप्ते को अपना वकील नियुक्त कर लंदन भेजा था | रंगो बापूजी गुप्ते इ.स.1840 से 1854 तक वह अंग्रेजो से लढे मगर उन्हें वह कुछ हासिल नहीं हुवा | और वो वहासे निराश होकर लौटे | मगर उन्होंने भारत मे आकर अंग्रेजो से लड़ने की ठानी और उन्होंने कही लोगो को लेकर अंग्रेजो के विरुद्ध लढना सुरु किया | अंग्रेज उनसे परेशान थे उनके ही साथी कृष्णाजी सिंदकर नाम के एक यक्ति ने उनके साथ गद्दारी कर उन्हें पकड़ाया | उन्हें पकड़कर ग्वालहेर के जेल मे रखा गया | मगर रंगो बापूजी उस जेल मे कुछ दिन ही रहे वे वहा से भाग गए | अंग्रेजो ने उन्हें बोहोत धूड़ा मगर वे कभी पकड़े नहीं गए | और किसी भरतीय को भी पता नहीं चला की वे कहा गए | कुछ लोगो का कहना है की यवतमाल जिल्हे के पास अड़ाम नदी के पास "बैरागी महाराज " का आश्रम है | वे बैरागी महाराज रंगो बापूजी महाराज ही है ऐसा लोगो को लगता है |
जयदयाल का जन्म इ.स.1810 मे हुवा था | वे कामन भरतपुर के रहवासी श्री रूपलालजी के पुत्र थे | ये एक युवा क्रांतिकारी थे वे कोटा मे एक राजा के दरबार मे मंत्री थे | उनको कही भाषावो मे प्रभुत्व था | उन्होंने अंग्रेजो के विरुद्ध लड़ने की लिए कोटा के महाराज को कहा | और वे लढ ने के लिए तयार हो गए | उन्होंने दी.15 अक्टूबर 1857 को मेजर बर्टन को युद्ध मे परास्त कर उसकी हत्या कर दी | अंग्रेज इस घटना से बोहोत ही | क्रोधित हो गए अंग्रेजो ने उन्हें पकड़ने वालो को 10000 /- रुपए का इनाम घोषित किया | कुछ दिन बाद उन्हीके एक साथी ने उनके साथ गद्दारी कर उन्हें पकड़वाया | और उन्हें कोटा के ब्रिटिश हाउस मे उन्हें फांसी पर लटकादिया |
हुकुमचंद का जन्म इ.स.1816 मे हुवा था | वे हांसी , हिस्सार के रहनेवाले थे | वे बोहोत ही बहादुर थे | वे अनेक क्रांतिकारी यो के साथ 1857 के स्वतंत्रता संग्राम मे शामिल थे | वे रानी लक्ष्मी बाई ,तात्या टोपे ,जैसी वेक्ति के साथ अंग्रेजो के खिलाप लढे | उन्होंने अंग्रेजो से लढ ने किलिये अपने एक दोस्त का साथ लिया वे उसके साथ अंग्रेजो से लढे मगर वे उस लढाई मे उनकी हर हुई | अंग्रेजो ने उन्हें और उनके दोस्त को पकड़ा और दी.19 जनवरी 1857 को फांसी दे दी |
आशादेवी - 6 जनवरी 1858
भगवती - 6 जनवरी 1858
राजकौर - 6 जनवरी 1858
नामकौर - 6 जनवरी 1858
रनवीरी - 6 जनवरी 1858
शोभादेवी - 6 जनवरी 1858
इन्द्रकौर - 6 जनवरी 1858
भवानी - 6 जनवरी 1858
हबीबा - 6 जनवरी 1858
हसीना - 6 जनवरी 1858
जमीला - 6 जनवरी 1858
मेहरी - 6 जनवरी 1858
माहि - 6 जनवरी 1858
बेथीबाई (रसूलपुर - 6 जनवरी 1858
लेखाजी (छाजूनगर - 6 जनवरी 1858
देवरानी (देवरिय - 8 जनवरी 1858
बख्तावरी (बरक्त - 8 जनवरी 1858
नाम-------रहनेवाले ---------- शहीद
अझल अली खान -- हरियाणा -- इ.स. 1857
अब्दुल रेहमान खान -- हरियाणा-- इ.स. 1857
अफसरयार खान -- दिल्ली -- इ.स. 1857
अहमदअली खान -- दिल्ली -- इ.स. 1857
अहमद मिर्ज़ा -- टोंक हरियाणा -- 15 दिसंबर 1857
अकबर खान -- टोंक हरियाणा -- 15 दिसंबर 1857
आमिर खान -- हरियाणा -- 15 दिसंबर 1857
दुल्हाजन -- हरियाणा -- 15 दिसंबर 1857
फैजल मुहमद खान -- भोपाल --29 जनवरी 1858
अली खान -- भोपाल -- 27 अप्रैल 1858
खैराती खान -- उत्तरप्रदेश-- 27 अप्रैल 1858
मोसी खान -- उत्तरप्रदेश -- 27 अप्रैल 1858
कादर अली खान -- नागपुर -- इ.स. 1858
बसोदा के नवाब -- बड़ोदा -- इ.स. 1858
वरिस महमूद खान -- इंदौर -- इ.स. 2 दिसंबर 1858